Saturday, December 7, 2024
HomeUTTAR PRADESHचलती फिरती हुई आंखों से अज़ाँ देखी है, मैं ने जन्नत तो...

चलती फिरती हुई आंखों से अज़ाँ देखी है, मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग नेमातृ दिवस के अवसर पर “मातृत्व” शीर्षक से एक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम की संयोजक मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अर्चना शुक्ला थीं और आयोजन सचिव डॉ. हंसिका सिंघल थीं। कार्यक्रम की शुरुआत मुन्नवर राणा के इस शेर से हुई-

चलती फिरती हुई आंखों से अज़ाँ देखी है,
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।

लखनऊ विश्वविद्यालय की स्ट्रीट थिएटर और सोशल अवेयरनेस सोसाइटी ‘अदम्य’ ने एक संगीतमय नाटक की प्रस्तुति दी।
इसके बाद माताओं से जुड़े व्यक्तिगत अनुभवों को और अधिक उजागर करने के लिए पासिंग द पार्सल का खेल खेला गया। इस खेल में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मानिनी श्रीवास्तव ने अपनी मां के द्वारा दो बच्चों को अकेले पालने और अपने शानदार संगीत करियर को छोड़ने के अनुभव को साझा किया। विषय विशेषज्ञ डॉ. अर्चना वशिष्ठ ने कहा, “माँ एक एहसास है जिसे हम केवल महसूस कर सकते हैं लेकिन शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते।” मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. अर्चना शुक्ला ने अपने समापन भाषण में कहा कि इस तरह के कार्यक्रम हमें विद्यार्थियों को बेहतर तरीके से जानने और उनके साथ अपने जुड़ाव को बढ़ाने में मदद करते हैं। अपने विचारों को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा- “ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने माताओं को बनाया है।”    इस कार्यक्रम में संकाय सदस्यों, विषय विशेषज्ञों और जेआरएफ सहित 50 से अधिक लोगों ने भाग लिया। उन्होंने माताओं से जुड़े कथाएँ और किस्से सुनाए। इसके बाद केक काटने की रस्म हुई। इस कार्यक्रम में पुरानी मीठी यादों और ढेर सारी मस्ती और हंसी का मिश्रण था। सही मायने में यह एक हृदयस्पर्शी कार्यक्रम था।

 

RELATED ARTICLES

Most Popular