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अखिलेश के ‘सियासी दांव’: बीजेपी खेमे में है ‘बेचैनी’

उत्तर प्रदेश:-इस वक़्त उत्तर प्रदेश में चहुँ ओर सियासी बयार बह रही है। हर दल चुनाव की बिसात पर अपनी-अपनी गोटियां बिछा रहा है। पिछले कुछ वर्षों के विधानसभा चुनावों पर अगर नजर डालें तो यूपी का ज्यादातर विधानसभा चुनाव धर्म की चासनी से डूबा नजर आया है। हिन्दू बनाम मुस्लिम की बुनियाद पर ही यूपी के ज्यादातर विधानसभा चुनाव होते नजर आये है। बात अगर पिछले विधानसभा चुनाव की करें तो पूरा चुनाव ही इसी सियासी पिच पर हुआ था नतीजा भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत से उत्तर प्रदेश में सरकार बनायी।

पर इस बार के विधानसभा चुनाव की तस्वीर कुछ बदली नजर आ रही है। धर्म की बुनियाद पर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा ने सबसे पहले 80 बनाम 20 का जातीय समीकरण वाला कार्ड चला है पर इस कार्ड पर अगर सही तरीके से बैटिंग कोई कर रहा है तो वो है सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव।

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)  बहुत ही सधे हुए लहजे में धीरे-धीरे जातिगत समीकरणों को साध रहे है। उनकी कोशिश है कि वो इस पूरे चुनाव को धर्म की जगह जातिगत समीकरण पर घुमा दें और पूरा चुनाव जातियों की लामबंदी के बीच हो। यही कारण है कि वो लगातार अपने बयान में सरकार आने के तीन महीने के अंदर जातिगत जनगणना कराने की बात कह रहे है।

दरअसल अखिलेश जानते है कि जातिगत जनगणना बीजेपी की दुखती रग है। बीजेपी कभी भी जातिगत जनगणना की पक्षधर नही रही है क्योंकि उसका मानना है कि जातिगत जनगणना से हिन्दू वोटों का बंटवारा होगा जिसका नुकसान उसे चुनाव में उठाना पड़ेगा। योगी सरकार में भी जातिगत जनगणना की मांग हमेशा उठती रही है पर भाजपा ने हमेशा इससे दूरी बनाए रखी है।

अब अखिलेश ने जातिगत जनगणना का दांव चलकर बीजेपी को मुश्किल में डाल दिया है। दरसअल उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले दलित, पिछड़े, अति पिछड़े, सहित कई जातियों की ये मांग रही है कि उत्तर प्रदेश में उनकी जातिगत जनगणना करायी जाये और उनकी भागीदारी के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी तय की जाय।

अब अखिलेश ने इस काम को पूरा करने का वादा कर दिया है। लिहाजा जो जातियां हिन्दू एकता के अंतर्गत लामबंद थी वो अब अपनी जातिगत स्थिति के चलते अखिलेश की तरफ मुड़ रही है और यही अखिलेश चाहते है कि पूरा चुनाव जातियों की घेराबंदी के बीच संपन्न हो। अपने इस प्रयास वो लगातार सफल होते भी दिख रहे है। अभी तक की जो चुनावी तस्वीर सामने आ रही है उसको देखकर तो यही लग रहा है कि अखिलेश अपने उद्देश्य में सफल हो रहे है।

हालांकि अखिलेश की कवायद के बीच भाजपा खेमे की खामोसी किसी बड़ी सियासी हलचल का संकेत दे रही है। दरअसल भाजपा की सियासत करने की जो तय रूपरेखा है मौजूदा दौर में भाजपा उससे अलग दिखायी पड़ रही है।

भाजपा हमेशा अग्रेसिव पॉलिटिक्स की पक्षधर रही है, चुनाव कोई भी हो, विपक्ष पर उसके राजनीतिक हमलों का दौर 6 महीने पहले से ही शुरू हो जाता है, पर उत्तर प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनाव भाजपा अपने इस पैटर्न से हटती दिख रही है, भाजपा के नेता सपा पर हमलावर जरूर है पर उनका अंदाज़ हमले से ज्यादा खानापूर्ति का नजर आ रहा है।

बता दें यही वो बिंदु है जहाँ अखिलेश और उनके समर्थकों को सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि विश्वास होना अच्छी बात है पर अतिविश्वास हमेशा खतरनाक होता है, इस पूरे चुनाव के दौरान अखिलेश को पूरी सतर्कता के साथ भाजपा को मुकाबला करना होगा क्योंकि भाजपा के सियासी तरकश से कब कौन सा तीर निकलेगा और उसका चुनाव पर क्या प्रभाव होगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है।

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