1968 में हवाई दुर्घटना में लापता फौजी नारायण का पार्थिव शरीर रोहतांग दर्रे में मिला
पूरे सैन्य सम्मान के साथ सैनिक नारायण का अंतिम संस्कार किया जाएगा
चमोली जिले का कोलपुड़ी गांव फौजी नारायण की यादों में हुआ गमगीन
चमोली: उत्तराखण्ड जाबांज फौजियों की वीरभूमि है। कण कण में वीर सैनिकों के अदम्य साहस की कहानी घर घर सुनायी जाती है। ऐसी ही आंखों को नम कर देने वाली बर्फ में दबी एक फौजी की कहानी ने अजब हलचल पैदा कर दी है। सात फरवरी 1968 की हवाई दुर्घटना में नारायण सिंह लापता करार दिए गए। पत्नी ने ग्लेशियर में लापता पति का सालों साल इंतजार किया। और फिर 2011 में चल बसी।
रोहतांग दर्रे की बर्फीली घाटियों में लापता सीमान्त चमोली जिले का फौजी नारायण सिंह बिष्ट अब अपने गांव ‘लौट’ रहा है। लेकिन पूरे 56 साल बाद। इस लम्बी अवधि में पहाड़ी बर्फीली नदियों में बहुत पानी बह गया। परिवार व गांव वालों ने यादों के सहारे पांच दशक से ज्यादा वक्त गुजार दिया।
अब गांव में हलचल है। माता पिता के इकलौते पुत्र नारायण सिंह के पुराने बुजुर्ग साथी एक बार फिर पुराने दिनों की धुंधली यादों को ताजा करने की कोशिश में जुटे हैं।
सात फरवरी 1968 में इंडियन एयर फोर्स का AN-12 विमान हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे इलाके में क्रैश हो गया था। 102 जवानों को ले जा रहा यह ट्विन इंजन एएन-12 टर्बोप्रॉप ट्रांसपोर्ट विमान चंडीगढ़ से लेह जाते समय लापता हो गया था। विमान खराब मौसम में फंस गया और हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
दो दिन पहले भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स और तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू की संयुक्त टीम कोहिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे पर 56 साल बाद चार भारतीय जवानों के शवों के अवशेष मिले हैं। नारायण के अलावा हरियाणा के सिपाही मुंशीराम,सहारनपुर के मलखान सिंह व केरल के थॉमस चेरियन के शव मिले। बैच नंबर से शवों की पहचान हुई।
जिसमें चमोली जिले के थराली तहसील के गांव कोलपुड़ी के लापता सैनिक नारायण सिंह का भी पार्थिव शरीर भी बरामद हुआ है। नारायण सिंह की जेब में उसके गांव व पत्नी बसंती का नाम लिखी पर्ची मिली।
कोलपुड़ी गांव के प्रधान और नारायण सिंह के भतीजे जयवीर सिंह ने बताया कि सोमवार को सेना के अधिकारियों ने उनकी पहचान हो जाने की सूचना दी। उन्होंने बताया कि जेब में मिले पर्स में एक कागज में नारायण सिंह ग्राम कोलपुड़ी और बसंती देवी नाम दर्ज था, साथ ही उनकी वर्दी के नेम प्लेट पर भी उनका नाम लिखा था।
बसंती देवी
सेना के अधिकारियों ने बताया कि बर्फ में शव सुरक्षित था, लेकिन बर्फ से बाहर निकालने के बाद शव गलने लगा है, जिससे उसे सुरक्षित किया जा रहा है। साथ ही उनका डीएनए सैंपल लिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि रिकार्ड के अनुसार नारायण सिंह सेना के मेडिकल कोर में तैनात थे। कोलपुड़ी गांव के फौजी साथी गोविंद सिंह,हीरासिंह बिष्ट कि भवान सिंह नेगी बताते हैं के कि नारायण ने 1965 भारत-पाक युद्ध में भी हिस्सा लिया था।
सेना की सूचना के बाद गांव में नारायण की पार्थिव देह का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। गुरुवार तक पार्थिव शरीर के गांव पहुंचने की संभावना जताई जा रही है। 56 साल बाद फौजी नारायण को मुखाग्नि दी जाएगी..पूरे सैन्य सम्मान के साथ सैनिक नारायण का अंतिम संस्कार किया जाएगा। उत्तराखण्ड की घाटियों में लम्बे समय तक नारायण के इंतजार की मार्मिक कहानी घर घर सुनायी जाएगी..जय हिंद..